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नबियों और रसूलों पर ईमान लाना ईमान के स्तंभों में से है, न कि केवल रसूलों पर ईमान लाना

प्रश्न: 138141

जिब्रील अलैहिस्सलाम की लम्बी हदीस में आया है कि उन्होंने जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से ईमान के बारे में सवाल किया तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ईमान के स्तंभों का उल्लेख किया और उसी में रसूलों पर ईमान लाना भी था। और जैसा कि यह बात सर्वज्ञात है कि प्रत्येक नबी रसूल नहीं है, तो क्या इसका मतलब यह है कि जो नबी है, रसूल नहीं है उसपर ईमान लाना अनिवार्य नहीं है?

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

जो ईमान लाना अनिवार्य है वह नबियों (ईशदूतों) और रसूलों (संदेशवाहकों) दोनों ही पर ईमान लाना है, केवल रसूलों पर नहीं। और यह धर्म के प्रमाण सिद्ध बातों तथा क़ुर्आन करीम में स्पष्ट किए गए अक़ीदा (आस्था) के स्तंभों में से हैः

अल्लाह तआला फरमाता है :

 قُولُوا آمَنَّا بِاللَّهِ وَمَا أُنْزِلَ إِلَيْنَا وَمَا أُنْزِلَ إِلَى إِبْرَاهِيمَ وَإِسْمَاعِيلَ وَإِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ وَالْأَسْبَاطِ وَمَا أُوتِيَ مُوسَى وَعِيسَى وَمَا أُوتِيَ النَّبِيُّونَ مِنْ رَبِّهِمْ لَا نُفَرِّقُ بَيْنَ أَحَدٍ مِنْهُمْ وَنَحْنُ لَهُ مُسْلِمُونَ  البقرة: 136 

(हे मुसलमानो!) तुम सब कहो कि हम अल्लाह पर ईमान लाए तथा उस (क़ुर्आन) पर जो हमारी ओर उतारा गया और उसपर जो इब्राहीम, इस्माईल, इस्ह़ाक़, याक़ूब तथा उनकी संतान की ओर उतारा गया, और जो मूसा और ईसा को दिया गया, तथा जो दूसरे नबियों को उनके पालनहार की ओर से प्रदान किया गया। हम इनमें से किसी के बीच अन्तर नहीं करते और हम उसी के आज्ञाकारी हैं।'' (सूरतुल बक़रह :136).

तथा अल्लाह सुब्हानहु व तआला फरमाता है :

  لَيْسَ الْبِرَّ أَنْ تُوَلُّوا وُجُوهَكُمْ قِبَلَ الْمَشْرِقِ وَالْمَغْرِبِ وَلَكِنَّ الْبِرَّ مَنْ آمَنَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ وَالْمَلَائِكَةِ وَالْكِتَابِ وَالنَّبِيِّينَ وَآتَى الْمَالَ عَلَى حُبِّهِ ذَوِي الْقُرْبَى وَالْيَتَامَى وَالْمَسَاكِينَ وَابْنَ السَّبِيلِ وَالسَّائِلِينَ وَفِي الرِّقَابِ وَأَقَامَ الصَّلَاةَ وَآتَى الزَّكَاةَ وَالْمُوفُونَ بِعَهْدِهِمْ إِذَا عَاهَدُوا وَالصَّابِرِينَ فِي الْبَأْسَاءِ وَالضَّرَّاءِ وَحِينَ الْبَأْسِ أُولَئِكَ الَّذِينَ صَدَقُوا وَأُولَئِكَ هُمُ الْمُتَّقُونَ البقرة : 177 

“भलाई यह नहीं है कि तुम अपना मुख पूर्व अथवा पश्चिम की ओर फेर लो! भला कर्म तो उसका है, जो अल्लाह, अन्तिम दिन (प्रलय), फ़रिश्तों, सभी पुस्तकों और नबियों पर ईमान लाया। तथा धन का मोह रखते हुए, समीपवर्तियों, अनाथों, निर्धनों, यात्रियों तथा माँगनेवालों को और दास मुक्ति के लिए दिया, नमाज़ की स्थापना की, ज़कात दी, अपने वचन को, जब भी वचन दिया, पूरा करते रहे एवं निर्धनता और रोग तथा युद्ध की स्थिति में धैर्यवान रहे। यही लोग सच्चे हैं तथा यही लोग (अल्लाह से) डरनेवाले हैं।” (सूरतुल बक़रह :177).

अतः आप सोचें और विचार करें कि किस प्रकार अल्लाह ने मोमिनों (विश्वासियों) के ऊपर सभी रसूलों और नबियों पर ईमान लाना अनिवार्य किया है, और उन में से इस्माईल, इस्हाक़ और उनकी संतान को नामित किया है। तथा अल्लाह ने बताया है कि मोमिन लोग नबियों और रसूलों में से किसी के बीच अन्तर नहीं करते, बल्कि वे लोग उस व्यक्ति को नास्तिक मानते हैं जिसने किसी ऐसे नबी के ईशदूतत्व का इन्कार किया जिसके ईशदूतत्व को अल्लाह ने प्रमाणित किया है। क्योंकि किसी एक रसूल (संदेशवाहक) या नबी (ईशदूत) का इन्कार सभी पैग़ंबरों का इन्कार है।

क़ाज़ी अयाज़ रहिमहुल्लाह कहते हैं :

“जिस व्यक्ति ने अल्लाह तआला के अन्य नबियों को बुरा-भला कहा … और उनका अपमान किया या जो संदेश वे लेकर आए उसके विषय में उन्हें झुठलाया, उनका इन्कार किया और उन्हें अस्वीकार किया, उसका हुक्म वही है जो हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का हुक्म है।” समाप्त हुआ।

“अश्शिफा” (2/1097)

शैखुल इस्लाम इब्न तैमिय्यह रहिमहुल्लाह कहते हैं :

“मुसलमान सभी नबियों पर ईमान लाते हैं, और उनमें से किसी के बीच कोई अन्तर नहीं करते। क्योंकि सभी नबियों पर ईमान लाना अनिवार्य है और जिसने उनमें से किसी एक का इन्कार किया तो उसने उन सब का इन्कार किया और जिसने नबियों में से किसी एक को बुरा-भला कहा तो वह काफिर है और उलमा की सर्व सहमति के साथ उसको क़त्ल करना अनिवार्य है।” समाप्त हुआ।

“अस्सफदिय्यह” (2/311)

अल्लामा अस-सअदी रहिमहुल्लाह ने – सूरतुल बक़रह की उपर्युक्त आयत की तफ्सीर (व्याख्या) में – फरमाया :

“इस आयत में उन सभी किताबों पर ईमान लाने का बयान है जो सभी नबियों पर उतारी गईं, और सामान्य रूप से सभी नबियों पर ईमान लाने का बयान है, तथा विशेष रूप से जिनका इस आयत में नाम लिया गया है, उनकी माननीय स्थिति की वजह से और इस कारण से कि वे महान शरीअतें लेकर आए। अतः नबियों और किताबों पर ईमान लाने में जो चीज़ अनिवार्य है वह यह है कि उन पर सामान्य रूप से ईमान लाया जाए, फिर उनमें से जिसके बारे में विस्तृत ज्ञान प्राप्त हो जाए उसपर विस्तार से ईमान लाया जाए।” समाप्त हुआ। (तैसीरुल करीमिर् रह्मान : 67)

रही बात जिब्रील अलैहिस्सलाम की प्रसिद्ध हदीस की जिसे उमर बिन ख़त्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु से इमाम मुस्लिम रहिमहुल्लाह (हदीस संख्या : 8) ने रिवायत किया है, उसमें आया है कि : (जिब्रील ने कहा : आप मुझे ईमान के बारे में बताएँ। आपने फरमाया : ईमान यह है कि तुम अल्लाह पर, उसके फरिश्तों पर, उसकी (उतारी हुई) किताबों पर, उसके रसूलों पर, आख़िरत के दिन पर और अच्छी व बुरी तक़्दीर पर ईमान रखो।)

यहाँ इस हदीस का मतलब यह नहीं है कि नबियों को छोड़ कर केवल रसूलों पर ईमान लाया जाए, बल्कि “रसूलों” का शब्द सभी नबियों को भी शामिल है। और यहाँ जो रसूलों का शब्द बोला गया है तो यह रसूलों के पहलू को प्राथमिकता देने के तोर पर है जो कि सबसे अधिक प्रसिद्ध और प्रचलित हैं। इसका प्रमाण उपर्युक्त आयतें हैं जो सभी नबियों पर ईमान लाने की अनिवार्यता को दर्शाती हैं।

तथा नबियों और रसूलों के बीच अन्तर प्रत्येक संदर्भ में लागू नहीं होता है, बल्कि जब पाठ (अर्थात् क़ुरआन व हदीस की इबारतों) में दोनों शब्दों में से किसी एक का उल्लेख किया गया होता हैः तो वहाँ नबी और रसूल दोनों मुराद होते हैं। उन दोनों के बीच अन्तर केवल तभी किया जाता है जब दोनों शब्द एक ही पाठ में दिखाई देते हैं।

और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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