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हिंदू को किराये पर घर देने का हुक्म

प्रश्न: 170543

मैं और मेरा परिवार एक दो मंज़िला घर में रहते हैं, हम पहली मंज़िल किराये पर दे रहे हैं, और उसे एक हिंदू व्यक्ति हमसे किराये पर लेगा। क्या किसी मूर्तिपूजक का मुसलमान के साथ एक घर में निवास करना गलत है ॽ

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाहके लिए योग्य है।

निवास के उद्देश्य से ग़ैर मुस्लिम को किरायेपर घर देने में कुछ भी गलत नहीं है,तथा उसे उस व्यक्ति को किराये पर देना हरामऔर निषिद्ध है जो उसे अल्लाह की अवज्ञा के लिए ठिकाना बना लेता है,जैसे कि पूजा पाट काघर,या पाप का स्थान आदि।

जबकि बेहतर यह है कि मुसलमान को किराये पर दियाजाये।

सरखसी रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

“इस में कोई आपत्ति की बात नहीं है कि मुसलमान किसी ज़िम्मी कोनिवास करने के लिए घर किराये पर दे,यदि वह उसमें शराब पीता है,या सलीब की पूजा करताहै या उसमें सूअर को दाखिल करता है तो मुसलमान को इन में से किसी चीज़ के अंदर पाप नहींहोगा,क्योंकि उसने उसे इस उद्देश्य के लिए किराये पर नहीं दिया है,और अवज्ञा किराये परलेने वाले आदमी के कृत्य में है,अतः घर के मालिक पर इस में कोई पाप नहीं है।”“अल-मबसूत” (16 / 39) से समाप्त हुआ।

तथा “अल-मौसूअतुल फिक़्हिय्या” (1 / 286) में आया है :

“यदि कोई ज़िम्मी किसी मुसलमान से इस उद्देश्य से घर किराये परलेकि वह उसे गिरजाघर,या शराब बेचने की दुकानबनायेगा,तो जमहूर (मालिकिया,शाफेइया,हनाबिला और अबू हनीफाके अनुयायी) इस बात की ओर गए हैं कि वह किराये पर देना फासिद है इसलिए कि वह अल्लाहकी अवज्ञा पर आधारित है। किंतु यदि ज़िम्मी उदाहरण के तौर पर निवास के लिए कोई घर किराएपर ले,फिर उसे गिरजाघर, सार्वजनिक पूजा स्थल बना ले, तो किराये काअनुबंध बिना मतभेद के संपन्न हो जायेगा। तथा घर के मालिक और आम मुसलमानों के लिए उसेभलाई का आदेश करने और बुराई से रोकने के सिद्धांत पर अमल करते हुए रोकने का अधिकारहै,जिस तरह कि ये चीज़ें उस घर में करने से रोका जाता है जिसका मालिकज़िम्मी है।” (अंत)

तथा इमाम अहमद रहिमहुल्लाह के बारे में उल्लेखकिया गया है कि उन्हों ने इसे नापसंद किया है और बिक्री के मामले में कड़ा रवैया अपनायाहै।

अल-मरदावी रहिमहुल्लाह ने फरमाया : “अल-मरवज़ी ने (अहमद से) उल्लेख किया है : उसे नहीं बेचा जायेगा,उसमें नाक़ूस बजाया जाय और सलीब लटकाये जायें ॽ इसको उन्हों ने बहुत गंभीर और बड़ा समझा और उसके बारे में कड़ारूख अपनाया। तथा अबुल हारिस ने उल्लेख किया है कि : मैं इसे उचित नहीं समझता, वहउसे किसी मुसलमान से बेचे मेरे निकट सबसे पसंदीदा है। अल-खल्लाल ने कहा : मेरे निकटउसे न तो उससे बेचा जायेगा और न किराये पर दिया जायेगा,क्योंकि दोनों का अर्थएक है। तथा अबू बक्र अब्दुल अज़ीज़ ने कहा : बेचने और किराये पर देने के बीच कोई अंतरनहीं है,और जब बेचने से रोका जायेगा तो किराये पर देने से भी रोका जायेगा।हमारे शैख – अर्थात शैख तक़ीयुद्दीन – ने फरमाया : तथा क़ाज़ी और उनके अनुयायियों ने इसबात पर उनके साथ सहमति जतायी है।” किताब “तसहीहुलफुरूअ़” (2 / 447)से अंत हुआ। अल-मरदावी ने कराहत के साथ जाइज़होने के कथन को शुद्ध क़रार दिया है।

सारांश यह कि : गैर मुस्लिम को निवास करने केलिए किराये पर घर देना जाइज़ है,और उसे मुसलमान को किराये पर देना सर्वश्रेष्ठहै।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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