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जमरात को कंकड़ी मारने का समय

प्रश्न: 49022

मैं निश्चित रूप से जमरात को कंकड़ी मारने का समय जानना चाहता हूँ कि उसका प्रथम समय क्या है और अंतिम समय क्या है।

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह फरमाते हैं :

जमरतुल अक़बा को कंकड़ी मारने का समय ईद का दिन है,  क्षमता और सक्रियता वाले लोगों के लिए ईद के दिन सूरज उगने से शुरु होता है, जबकि उनके अलावा कमज़ोरों तथा वे बच्चे और महिलाएं जो लोगों के साथ संघर्ष नहीं कर सकते उनके लिए कंकड़ी मारने का समय रात के अंतिम हिस्से ही से शुरु हो जाता है। असमा बिन्त अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हा ईद की रात चाँद के डूबने की प्रतीक्षा करती थीं, जब वह गायब हो जाता तो मुज़दलिफ़ा से मिना के लिए रवाना हो जाती थीं और जमरतुल अक़बा को कंकड़ी मारती थीं। रही बात उसके अंतिम समय की तो वह ईद के दिन सूर्यास्त तक है। और अगर भीड़ है या आदमी जमरात से दूर है और वह रात तक उसे विलंब करना चाहता है, तो उस में उसपर कोई आपत्ति की बात नहीं है। लेकिन वह उसे ग्यारहवीं तारीख की फज्र के उदय होने तक विलंब नही करेगा।

जहाँ तक तश्रीक़ के दिनों अर्थात ज़ुल-हिज्जा के ग्यारहवें दिन, बारहवें दिन और तेरहवें दिन में जमरात को कंकड़ी मारने का संबंध है, तो कंकड़ी मारने की शुरूआत सूरज के ढलने से अर्थात ज़ुहर के समय के प्रवेश करने से होती है और रात तक जारी रहती है, और अगर वहाँ भीड़-भाड़ वगैरह की वजह से कष्ट का सामना है तो रात में फज्र के निकलने तक कंकड़ी मारने में कोई आपत्ति नहीं है। तथा ग्यारहवें, बारहवें और तेरहवें दिन ज़वाल अर्थात सूरज ढलने से पूर्व कंकड़ी मारना जायज़ नहीं है। क्योंकि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ज़वाल के बाद ही कंकड़ी मारी है। और लोगों से फरमायाः ''तुम मुझसे अपने हज्ज के कार्यों (अनुष्ठान) को सीख लो।'' नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का – इस समय – तक कंकड़ी मारने को विलंब करना जबकि उस समय सख्त गर्मी होती है, और दिन के प्राथमिक समय को छोड़ देना जबकि वह अधिक शीतल और सरल होता है, यह इस बात का प्रमाण है कि इस समय से पहले कंकड़ी मारना जायज़ नहीं है। इस बात को को यह तथ्य भी दर्शाता है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सूरज के ढलते ही ज़ुहर की नमाज़ पढ़ने से पहले ही कंकड़ी मारते थे। यह इस बात का प्रमाण है कि सूरज ढलने से पहले कंकड़ी मारना जायज़ नहीं है, नहीं तो ज़वाल से पहले कंकड़ी मारना सर्वश्रेष्ठ होता, ताकि ज़ुहर की नमाज़ उसके प्रथम समय में पढ़ी जाए। क्योंकि नमाज़ को उसके प्रथम समय में पढ़ना सबसे अच्छा है। सारांश (निष्कर्ष) यह कि तश्रीक़ के दिनों में ज़वाल से पहले कंकड़ी मारना जायज़ नहीं है।

"फतावा अर्कानुल इस्लाम'' (पृष्ठः 560)।

तथा उन्होंने यह भी फरमाया :

“ईद के दिन जमरतुल अक़बा को कंकड़ी मारना (ज़ुल-हिज्जा के) ग्यारहवें दिन की फ़ज्र के उदय होने पर समाप्त हो जाता है और कमजोरों तथी उन्हीं के समान लोगों के लिए जो लोगों के साथ भीड़ भाड़ का सामना नहीं कर सकते, क़ुर्बानी की रात को रात के अंतिम हिस्से से ही शुरू हो जाता है।

रही बात तश्रीक़ के दिनों में उसे कंकड़ी मारने की तो यह उसके साथ के दोनों जमरात को कंकड़ी मारने की तरह, उसको कंकड़ी मारने की शुरूआत ज़वाल (ज़ुहर की नमाज़ के प्रथम समय) से होती है और उस दिन के बाद वाली रात को फज्र के उदय होने पर समाप्त होती है, परंतु अगर तश्रीक़ का अंतिम दिन है तो रात में कंकड़ी नहीं मारी जाएगी अर्थात चौदहवीं रात को। क्योंकि तश्रीक़ का दिन उसके सूर्यास्त से ही समाप्त हो गया। इसके बावजूद दिन में कंकड़ी मारना बेहतर है, लेकिन इन समयों में हाजियों की बड़ी संख्या और उनके ज्ञान एवं अनुभव की कमी,  तथा उनके एक दूसरे की परवाह न करने के कारण यदि उसे अपने विनाश, अथवा क्षति या गंभीर कठिनाई का भय हो तो वह रात को कंकड़ी मारेगा और उस पर कोई आपत्ति की बात नहीं है। इसी तरह यदि वह इन चीज़ो के डर के बिना ही रात के समय कंकड़ी मारे तब भी कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन बेहतर यही है कि वह इस मुद्दे में सावधानी से काम ले और रात में उसी स्थिति में कंकड़ी मारे जब उसकी आवश्यकता हो।''

"फतावा अर्कानुल इस्लाम'' (पृष्ठः 557-558)।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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