मैंने अक्सर फोरमों में देखा है और मुझे ईमेल प्राप्त होते रहते हैं कि : पूर्वजों में से एक आदमी ने कहा : ”ला इलाहा इल्लल्लाह अददा मा कान, व अददा मा यकून, व अददल हरकाति वस्सुकून” (‘अल्लाह के अलावा कोई सत्य पूज्य नहीं’ उन चीज़ों की संख्या के बराबर जो हो चुकीं, और उन चीज़ों की संख्या के बराबर जो होंगी, तथा हरकात (आंदोलन) और सुकून (ठहराव) की संख्या के बराबर)। फिर पूरे एक साल बीत जाने के बाद, उन्होंने इसे फिर से कहा, तो इसपर फरिश्तों ने कहा : हम (अभी) पिछले वर्ष की नेकियों के लिखने से फ़ारिग़ नहीं हुए हैं।
क्या “ला इलाहा इल्लल्लाह अददल हरकाति वस्सुकून” कहने के बारे में कोई विशेष पुण्य वर्णित हैॽ
प्रश्न: 135060
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
क़ुरआन और सुन्नत के विशुद्ध प्रमाण के बिना, इस दुआ या इसके अतिरिक्त अन्य दुआओं, अज़कार और इबादतों की ओर पुन्य और विशिष्ट गुण की निस्बत करना सही नहीं है।
प्रश्न में उल्लिखित रिपोर्ट विद्वानों की पुस्तकों में वर्णित नहीं है, और न तो हदीस के विद्वानों ने उसे अपनी मुसनद किताबों में उल्लेख किया है। अतः इसे लोगों के बीच प्रकाशित करना, या इसका वर्णन करना जायज़ नहीं है, सिवाय इसके कि इसका उद्देश्य लोगों को इसके बारे में चेतावनी देना हो। मुसलमानों को धर्म के बारे में झूठ फैलाने से सावधान रहना चाहिए। और जिसने इसके बारे में लापरवाही से काम लिया, उसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की उस दुआ (शाप) का एक हिस्सा पहुँचेगा, जो आपने उस व्यक्ति पर की है जो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर झूठ गढ़ता है।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से निम्नलिखित प्रश्न पूछा गया :
उस महिला की दुआ का क्या हुक्म है जो इस तरह कहती है : “ला इलाहा इल्लल्लाह अददा मा काना वमा यकूनो, व अददा हरकातिह, व अददा खलक़िहि मिन खल्क़े आदमा हत्ता युबअसून (अल्लाह के अलावा कोई सत्य पूज्य नहीं उन सभी चीज़ों की संख्या के बराबर जो हो चुकी हैं और जो होंगी, और उसकी हरकतों (आंदोलनों) की संख्या के बराबर तथा उसकी सृष्टि की संख्या के बराबर आदम अलैहिस्सलाम की रचना से पुनर्जीवित होने तक)
तो उन्होंने कहा :
यह दुआ अतिशयोक्ति के अधिक समान है। अगर वह कहती : सुबहानल्लाह व बिहम्दिह अददा खल्क़िह (अल्लाह की महिमा और प्रशंसा हो, उसकी रचना की संख्या के बराबर), या ”ला इलाहा इल्लल्लाह अददा ख़ल्क़िह” (अल्लाह के अलावा कोई सत्य पूज्य नहीं, उसकी रचना की संख्या के बराबर) तो इन सभी चीज़ों से पर्याप्त होता। तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम यह दुआ किया करते थे : “सुबहानल्लाह व बिहम्दिह, अददा खल्क़िह, सुबहानल्लाह व बिहम्दिह रिज़ा नफ़्सिह, सुबहानल्लाह व बिहम्दिह ज़िनता अर्शिह, सुबहानल्लाह व बिहम्दिह मिदादा कलिमातिह” (अल्लाह की महिमा और प्रशंसा है, उसकी रचना की संख्या के बराबर, अल्लाह की महिमा और प्रशंसा हो, उसकी आत्मा की प्रसन्नता के बराबर, अल्लाह की महिमा और प्रशंसा हो, उसके अर्श (सिंहासन) के वज़न के बराबर, तथा अल्लाह की महिमा और प्रशंसा हो उसके कलिमात की रोशनाई के बराबर।)
यह सबसे व्यापक तस्बीह है। जहाँ तक इन चीजों का संबंध है जो कुछ लोग कहते हैं, उन्हें इसमें पाई जाने वाली तुकबंदी (रिद्म) और आविष्कृत अर्थ पसंद आता है! तो इनसे उपेक्षा कर सुन्नत में वर्णित बातों को अपनाना सबसे अच्छा है।” उद्धरण समाप्त हुआ।
”लिक़ाआत अल-बाब अल-मफ्तूह” (बैठक संख्या/63, प्रश्न संख्या/14)।
और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर