हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाहके लिए योग्य है।
सर्व प्रथम :
हम आपके इस्लाम के निमंत्रण का लोगों मेंप्रसार करने की उत्सुकता पर आभारी हैं, तथा हम सुन्नत कापालन करने और शरीअत का विरोध न करने पर आपकी उत्सुकता पर आपके के शुक्र गुज़ार हैं, और हम अल्लाह तआलासे प्रश्न करते हैं कि वह आपके प्रयासों को आसान बना दे और आप लोगों को सर्वश्रेष्ठबदला प्रदान करे।
दूसरा :
जमाअत की नमाज़ मस्जिद में पढ़ना हर उस व्यक्तिपर अनिवार्य है जो सामान्य आवाज़ में अज़ान को सुनता है जबकि उसके सुनने में कोई रूकावटन हो और न हीं माइक्रोफोन के द्वारा उसकी आवाज को बढ़ाई या ऊंची की गयी हो, और विद्वानों केराजेह (ठीक) कथन के आधार पर जमाअत की नमाज़ उस मस्जिद में अनिवार्य है जहाँ अज़ान दीजाती है।
तथा अधिक जानकारी के लिए प्रश्न संख्या: (38881) का उत्तर देखिए।
लेकिन . . . किसी वैध ज़रूरत या उचित हितका पाया जाना संभव है जो मुसलमानों के एक दल के लिए मस्जिद के अलावा जगह में नमाज़ पढ़नेको वैध ठहराता हो।
इसमें कोई संदेह नहीं कि गैर मुसलमानोंको इस्लाम की दावत देना एक महान हित है, यदि आप लोगों काअधिक गुमान यह है कि आप लोगों का इस हॉल में नमाज़ पढ़ना उन्हें प्रभावित करेगा, और संभव है कि उनमेंसे कुछ के इस्लाम स्वीकारने का कारण बन जाए तो हॉल में नमाज़ पढ़ने में कोई रूकावट नहींहै,अतः आप लोग अज़ान देंगे,इक़ामत कहेंगे और जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ेंगे।
और यदि यह हर साल दोहराया गया तो भी बिदअतनहीं होगा,क्योंकि उसका उद्देश्य इस प्रतीक का प्रदर्शन करके और गैर मुसलमानों को आमंत्रितकरके शरई हित को प्राप्त करना है, लेकिन उसके लिए हर साल या हर महीने या इसके समान किसी एक दिनको निर्धारित नहीं किया जायेगा, , बल्कि उसमें मामला ज़रूरत पर आधारित होगा, फिर दिनों के बीचबदलाव किया जाता रहेगा और सबसे उचित दिन का चयन किया जायेगा जिसमें अधिक से अधिक लोगएकत्र होते हों और मुसलमानों की सबसे बड़ी संख्या उनको देख सकें।