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क्या व्यवसाय नमाज़ को उसके समय से विलंब करने के वैध कारणों में से है?

प्रश्न: 36784

मैं कार्य करता हूँ, और एक ऐसे समय में कार्य करता हूँ जो मुझे फ़ज्र और ज़ुहर की नमाज़ पढ़ने की अनुमति नहीं देता है, तो क्या मेरे लिए कार्य करने के बाद किसी समय में उन दोनों नमाज़ें को पढ़ना जायज़ है?

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

किसी भी मुसलमान के लिए बिना किसी कारण के नमाज़ को उस के समय से विलंब करना जायज़ नहीं है, तथा नमाज़ को उसका समय निकल जाने के बाद अदा करने को वैध ठहराने वाले शरई कारणों में से : नींद और भूल-चूक सम्मिलित हैं। सांसारिक कार्य करना नमाज़ को छोड़ने या उसे उसके समय से विलंब करने को वैध ठहराने वाले कारणों में से नहीं हैं। बल्कि सच्चे मुसलमानों की विशेषताओं में से यह है कि व्यापार और व्यवसाय उन्हें अल्लाह तआला की याद और नमाज़ स्थापित करने से असावधान व विचलित नहीं करते।

अल्लाह तआला का फ़रमान है :

فِي بُيُوتٍ أَذِنَ اللَّهُ أَنْ تُرْفَعَ وَيُذْكَرَ فِيهَا اسْمُهُ يُسَبِّحُ لَهُ فِيهَا بِالْغُدُوِّ وَالآَصَالِ رِجَالٌ لا تُلْهِيهِمْ تِجَارَةٌ وَلا بَيْعٌ عَنْ ذِكْرِ اللَّهِ وَإِقَامِ الصَّلاةِ وَإِيتَاءِ الزَّكَاةِ يَخَافُونَ يَوْمًا تَتَقَلَّبُ فِيهِ الْقُلُوبُ وَالأَبْصَارُ . لِيَجْزِيَهُمُ اللَّهُ أَحْسَنَ مَا عَمِلُوا وَيَزِيدَهُمْ مِنْ فَضْلِهِ وَاللَّهُ يَرْزُقُ مَنْ يَشَاءُ بِغَيْرِ حِسَابٍ

[النور: 36 – 38] .

”उन घरों में जिनको ऊँचा करने और जिनमें अपने नाम को याद करने का अल्लाह ने हुक्म दिया है, वहाँ प्रभात काल और संध्या समय उसकी तसबीह करते हैं, ऐसे लोग जिन्हें व्यापार और क्रय-विक्रय अल्लाह तआला के ज़िक्र और नमाज़ का़यम करने और ज़कात अदा करने से असावधान नहीं करते, वे उस दिन से डरते हैं जिस दिन बहुत से ह्रदय और बहुत सी आँखें उलट पलट हो जाएंगी, इस आशा से कि अल्लाह तआला उन्हें उनके कार्यों का अच्छा बदला प्रदान करे, बल्कि अपनी दया व कृपा से कुछ और अधिक प्रदान करे, अल्लाह तआला जिसे चाहता है असंख्य रोज़ियाँ प्रदान करता है।” (सूरतुन्नूर : 37-38)

शैख़ अबदुर्रहमान अस-सअदी रहिमहुल्लाह तआला कहते हैं कि :

ये लोग अगरचे व्यापार करें, बेचें और खरीदें : परन्तु इसमें कोई निषेध नहीं है, क्योंकि यह व्यवसाय उन्हें असावधान नहीं करता कि वे इसे (अल्लाह तआला के ज़िक्र, नमाज़ क़ायम करने और ज़कात देने) पर प्राथमिकता व प्रधानता दें, बल्कि उन्होंने अल्लाह तआला की आज्ञाकारिता और उसकी उपासना को अपना लक्ष्य और अंतिम उद्देश्य बनाया हुआ है, इसलिए जो चीज़ भी उन के बीच और उस लक्ष्य के बीच बाधक हुई, उसे उन्हों ने अस्वीकार कर दिया।

और जब अधिकतर दिलों पर दुनिया को छोड़ना कठिन होता है और विभिन्न प्रकार के व्यापार के द्वारा कमाई करने की चाहत प्रिय होती है, और आम तौर पर उसे त्यागना उनके ऊपर भारी होता है, और उस पर अल्लाह तआला के अधिकारों को प्राथमिकता देना उनके लिए कठिन होता है, तो अल्लाह तआला ने -प्रलोभन और डराने के तौर पर – उस चीज़ का उल्लेख किया जो उस पर प्रोत्साहित और प्रेरित करती है :

  يَخَافُونَ يَوْمًا تَتَقَلَّبُ فِيهِ الْقُلُوبُ وَالأَبْصَارُ  

(वे उस दिन से ड़रते हैं जिस दिन बहुत से ह्रदय और बहुस सी ऑंखें उलट पलट हो जायेंगी) अर्थात उस दिन की भयावहता व पीड़ा तीव्रता से, और उसके दिलों और शरीर को झिंझोड़ कर रख देने के कारण।

इसीलिए वे लोग उस दिन से डर गए, तो उन के ऊपर कार्य (अर्थात आखि़रत के लिए कार्य) करना, और उससे फेर देनेवाली (विमुख कर देनेवाली) चीजों को छोड़ देना आसान हो गया।

‘‘तफ़सीर सअदी’’

तथा नमाज़ की अनिवार्यता और उसके समय के प्रावधान के बारे में अल्लाह तआला ने फरमाया:

إِنَّ الصَّلاةَ كَانَتْ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ كِتَاباً مَوْقُوتاً

النساء: 103

”निःसंदेह नमाज़ पढ़ना ईमानवालों पर नियमित समय पर अनिवार्य है।” (सूरतुन्निसाः 103)

शैख अब्दुर्रहमान अस-सअदी फरमाते हैं :

अर्थात उसके समय में अनिवार्य है। तो इससे उसकी अनिवार्यता का पता चलता है, और इस बात का भी पता चलता है कि उसका एक समय है जिसके साथ ही वह शुद्ध (मान्य) हो सकती है, और वह यही समय हैं जो मुसलमानों के छोटों, बड़ों, ज्ञानियो और अज्ञानियों के निकट निर्धारित और तय शुदा हैं, और उसे उन्हों ने अपने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस कथन से लिया है कि : ‘‘तुम उसी तरह नमाज़ पढ़ो जैसा कि तुम ने मुझे नमाज़ पढ़ते हुए देखा है।’’ तथा अल्लाह का कथन (ईमानवालों पर) इस बात को इंगित करता है कि नमाज़ ईमान का तुला है, और बन्दे के ईमान के अनुसार ही उसकी नमाज़ होती है, और उसी के अनुसार वह संपूर्ण व संपन्न होती है।

‘‘तफ़सीर सअदी’’

अल्लाह तआला ने – बगैर किसी कारण के नमाज़ को उसके समय से विलंब कर देनेवाले को चेतावनी (धमकी) देते हुए – फ़रमाया :

فَخَلَفَ مِنْ بَعْدِهِمْ خَلْفٌ أَضَاعُوا الصَّلاةَ وَاتَّبَعُوا الشَّهَوَاتِ فَسَوْفَ يَلْقَوْنَ غَيًّا . إِلا مَنْ تَابَ وَآَمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا فَأُولَئِكَ يَدْخُلُونَ الْجَنَّةَ وَلا يُظْلَمُونَ شَيْئًا

مريم : 59، 60

”फिर उनके पश्चात ऐसे बुरे लोग उनके उत्तराधिकारी हुएए जिन्होंने नमाज़ को गँवा दिया और मन की इच्छाओं के पीछे पड़ गए। अतः जल्द ही वे (नरक की घाटी) ग़य (या घाटे) से दोचार होंगे, किन्तु जिसने तौबा कर लिया और ईमान ले आया और अच्छा कर्म किया, तो ऐसे लोग जन्नत में प्रवेश करेंगे। उनपर कुछ भी ज़ुल्म न होगा।” (सूरत मरयम : 59, 60)

ग़य : घाटा, नुकसान, या नरक में एक घाटी का नाम है।

और एक स्थान पर अल्लाह तआला का यह कथन है :

فَوَيْلٌ لِلْمُصَلِّينَ . الَّذِينَ هُمْ عَنْ صَلاتِهِمْ سَاهُونَ

الماعون: 4 ، 5

”अतः तबाही है उन नमाज़ियों के लिएए जो अपनी नमाज़ से ग़ाफिल (असावधान) हैं।” (सूरतुल माऊन : 4, 5)

इब्ने कसीर रहीमहुल्लाह कहते हैं कि :

इब्ने मसऊद रजियल्लाहु तआला अन्हु से वर्णित है कि उनसे कहा गया कि अल्लाह तआला क़ुरआन मज़ीद में नमाज़ का वर्णन बहुत अधिक करता है, अल्लाह ने फरमाया :

”जो अपनी नमाज़ से ग़ाफिल (असावधान) हैं।”

एक दूसरे स्थान पर फ़रमाया :

”अपनी नमाज़ पर सदैव जमें रहते हैं।”

तथा फ़माया :

”और अपनी नमाज़ों की रक्षा करते हैं।”

तो इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने कहा : उनके समय पर (अर्थात इन आयतों का मतलब यह है कि नमाज़ों की उनके नियमित समय पर पाबंदी करते हैं।)

लोगों ने कहा कि: हम तो यह समझ़ते थे कि यह नमाज़ को छोड़ने के बारे में है। (अर्थात पाबंदी का मतलब यह है कि वे नमाज़ नहीं छोड़ते हैं) तो इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु तआला अन्हुं ने कहा : यह तो कुफ़्र है…

तथा औज़ाई रहिमहुल्लाहु तआला ने इबराहीम बिन यज़ीद रहिमहुल्लाहु तआला से उल्लेख किया है कि उमर बिन अबदुल अज़ीज़ रहिमहुल्लाहु तआला ने यह आयत तिलावत की :

فَخَلَفَ مِنْ بَعْدِهِمْ خَلْفٌ أَضَاعُوا الصَّلاةَ وَاتَّبَعُوا الشَّهَوَاتِ فَسَوْفَ يَلْقَوْنَ غَيًّا

مريم : 59

”फिर उनके पश्चात ऐसे बुरे लोग उनके उत्तराधिकारी हुएए जिन्होंने नमाज़ को गँवा दिया और मन की इच्छाओं के पीछे पड़ गए। अतः जल्द ही वे (नरक की घाटी) ग़य (या घाटे) से दोचार होंगे।” (सूरत मरयम : 59)

फ़िर फरमाया : उनका नमाज़ को नष्ट करना, नमाज़ को छोड़ना नहीं था, बल्कि उन्हों ने नमाज़ के समय को नष्ट कर दिया। (अर्थात नमाज़ को उसके समय पर नहीं अदा किया)।

”तफसीर इब्ने कसीर” (3/128, 129)

अतः आप के लिए काम काज के बहाने के आधार पर नमाज़ को उसके समय से विलंब करना जायज़ नहीं है। यदि आप के लिए काम काज की वजह से नमाज़ को उसके समय पर अदा करना संभव नहीं है तो आप को यह काम छोड़ देना चाहिए और इसके अलावा कोई ऐसा कार्य तलाश करना चाहिऐ जो आप की नमाज़ को नष्ट करने का कारण न बने।

तथा बुद्धिमान मुसलमान के लिए उचित नहीं है कि वह अपने आप को अल्लाह तबारक व तआला की धमकी (चेतावनी) से दोचार करे। और न तो उसके लिए यह उचित है कि अपने दीन को दुनिया के नश्वर सामान के बदले बेच दे।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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