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वकालत का पेशा अपनाने वाले व्यक्ति का कर्तव्य

प्रश्न: 268937

अल्लाह का शुक्र है कि मैं एक प्रतिबद्ध वकील हूँ। मैं यह पूछना चाहता हूँ कि इस्लामी धर्मशास्त्र के विधान व क़ानून का ज्ञान हासिल करने का रास्ता क्या है? इसका मतलब यह है कि मैं इस्लामी आपराधिक क़ानून, इस्लामी वाणिज्यिक क़ानून और इस्लामी नागरिक क़ानून सीखना चाहता हूँ। तो क्या कोई ऐसा स्थान है जो मुस्लिम वकीलों को इन विज्ञानों की शिक्षा देता है? एक मुस्लिम वकील अपनी उम्मत (समुदाय, राष्ट्र) की सेवा कैसे कर सकता है? आप मुझे  क्या  आदेश औऱ उपदेश देते हैं? अल्लाह आप को बहुत अच्छा बदला दे।

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

सर्वप्रथम :

मुहामात (वकालत) की वास्तविकता : किसीविवाद के बारे में अन्य व्यक्ति की तरफ से मुक़दमेबाज़ी करना और अन्याय को ख़त्मकरने या हक़ दिलाने के लिए न्यायपालिका के सामने सिफारिश करना अर्थात मुक़दमा पेशकरना वकालत कहलाता है।

इस प्रकार की वकालत (प्रतिनिधित्व) के बारेमें बुनियादी बात यह है कि यह जायज़ है।

इब्ने क़त़्त़ान रहिमहुल्लाह तआला कहते हैं :

“वे (उलमा) इस बात पर सहमत हैं कि मुवक्किल कीउपस्थिति और प्रतिपक्षी की सहमति के साथ विवादों और अधिकारों को मांगने मेंवकालत करना जायज़ है यदि मुवक्किल उपस्थित हो।”समाप्त हुआ। “अल-इक़्नाअ़”(2/156).

शैख़ अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़ रहिमहुल्लाह तआला कहते हैं :

“विवादों में प्रतिनिधित्व करने को “मुहामात” (अर्थात वकालत करना) कहते हैं, और यह प्रतिनिधित्व (वकालत) नबीसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के समयकाल ही से लेकर आज तक अस्तित्वमें है। वकालत करने (वकील बनने) में कोई आपत्ति की बात नहींहै, परन्तु इसे “मुहामात” से नामित करना एक नया नाम है।

यदि वकील अल्लाह से डरता है और ग़लत एवं झूठ बात के साथ अपने मुवक्किल की मददनहीं करता है, तो ऐसे वकील पर कोई गुनाह नहीं है।” समाप्त हुआ। “फतावा नूरुन अलद्-दर्ब” (19/231).

अतः वकील को चाहिए कि वह हक़दार की ओर से समर्थन और उसके अधिकार की रक्षा करे,किन्तु जो व्यक्ति अत्याचारी है या उसका कोई अधिकारनहीं है, तो उसके लिए ऐसे व्यक्ति को उसकेबातिल पर समर्थन देना जायज़ नहीं है।

अल्लाह तआला ने फरमाया :

( وَتَعَاوَنُوا عَلَى الْبِرِّ وَالتَّقْوَى وَلَا تَعَاوَنُواعَلَى الْإِثْمِ وَالْعُدْوَانِ وَاتَّقُوا اللَّهَ إِنَّ اللَّهَ شَدِيدُالْعِقَابِ ) [المائدة:2].

“नेकीऔर तक़्वा (परहेज़गारी) के कामों में एक दूसरे का सहयोग किया करो तथा पाप औरअत्याचार पर एक दूसरे का सहयोग न करो, औरअल्लाह से डरते रहो, नि:संदेह अल्लाह तआला कड़ी यातना देनेवाला है।” (सूरतुलमायदा : 2)

तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :

( وَلَا تُجَادِلْ عَنِ الَّذِينَ يَخْتَانُونَ أَنْفُسَهُمْ إِنَّاللَّهَ لَا يُحِبُّ مَنْ كَانَ خَوَّانًا أَثِيمًا ) [النساء: 107].

“और आपउन लोगों की ओर से न झगड़ें जो स्वयं अपने साथ विश्वासघात करते है। निःसंदेह अल्लाह ऐसे व्यक्ति से प्रेम नहीं करता है जो विश्वासघाती पापी हो।”” (सूरतुन्-निसा : 107)

शैख़ अब्दुर्रहमान अस्-सअ़दी रहिमहुल्लाह तआला कहते हैं :

(अल्लाह के फरमान) [وَلا تُجَادِلْ عَنِ الَّذِينَيَخْتَانُونَ أَنْفُسَهُمْ]: “और आपउन लोगों की ओर से न झगड़ें जो स्वयं अपने साथ विश्वासघात करते हैं।” [में विश्वासघात के लिए “यख़्तानूना” (یَخْتَانُونَ)का शब्द प्रयोग किया गया है उसका, और ऐसे ही शब्द]“अल-इख़्तियान” तथा “अल-ख़यानत” (’’اَلاِخْتِیَانُ‘‘ و ’’اَلْخِیَانَة‘‘) का प्रयोगअपराध, अत्याचार और पाप के अर्थ में होता है। और इस निषेध में उस व्यक्ति की तरफसे झगड़ना भी शामिल है जो किसी ऐसे पाप का दोषी है जिस पर कोई हद् (शरई दंड) यासज़ा लाज़िम आती हो। तो उस व्यक्ति से प्रकट होनेवाले विश्वासघात का खंडन कर याउसपर निष्कर्षित होनेवाली क़ानूनी सज़ा (शरई दंड) का निवारण कर उसकी ओर से बहस याझगड़ा नहीं किया जाएगा। [إِنَّ اللَّهَ لا يُحِبُّ مَنْ كَانَخَوَّانًا أَثِيمًا] ”निःसंदेह अल्लाह ऐसे व्यक्ति से प्रेम नहीं करता है जो विश्वासघातीपापी हो।” अर्थात् अल्लाह ऐसे व्यक्ति से प्रेम नहीं करता है जो बहुत ज़्यादाविश्वासघात और पाप करनेवाला हो। और जब महब्बत को नकार दिया गया तो उसका विपरीतसाबित हो गया, और वह घृणा है। और आयत के आरम्भ में उक्त निषेध के लिए यह चीज़ कारणके समान है।” समाप्त हुआ। “तफ्सीरअस-सअ़दी” (पृष्ठ संख्या : 200)

यह्या बिन राशिद से रिवायत है वह कहते हैं कि : हम अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा की प्रतीक्षा में बैठे थे, वहहमारे पास आए, बैठे और फिर फरमाया : मैंने अल्लाह के पैगंबरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुना है कि : “जिसव्यक्ति की सिफारिश अल्लाह के हुदूद में से किसी हद (शरई दंड) के लागू करने मेंआड़े आगई तो निःसंदेह उसने अल्लाह का विरोध किया, और जिसने जानते बूझते हुए किसीअसत्य के बारे (की हिमायत) में झगड़ा किया तो वह निरंतर अल्लाह के क्रोध में रहेगायहाँ तक कि वह उससे रुक जाए। और जो कोई किसी मोमिन के बारे में कोई ऐसी बात कहे जोउसमें न हो तो अल्लाह उसे जहन्नमियों के पीप में डालेगा (और वह उसी में रहेगा)यहाँ तक कि वह अपनी बात से विमुख हो जाए।” इस हदीस की रिवायतअबू दाऊद (हदीस संख्या : 3597) ने की है और शैख़ अल्बानी ने “अस्-सिलसिलतुस्-सहीहा” (1/798) में इसे सहीह क़रारदिया है।

शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह तआला कहते हैं :

मुहामात कहते हैं : किसी आदमी की ओर से प्रतिनिधित्व (वकालत) करना ताकि वह मुवक्किल के प्रतिपक्षीसे बहस करे। इस प्रकार की वकालत दो भेदों में विभाजित है : पहली क़िस्म यह है कि वकील हक़ के साथ औरहक़ की वकालत करे। इस तरह की वकालत करने में कोई गुनाह नहीं है क्योंकि यह इससे अधिककुछ नहीं है कि यह पारिश्रमिक के बदले किसी व्यक्ति की वकालत (प्रतिनिधित्व) करनाहै और पारिश्रमिक के बदले वकालत करना जायज़ है, इसमें कोई हरज की बात नहीं है।

वकालत का दूसरा भेद यह है कि वकील हक़ के साथ या बातिल के साथ अपनी बात कोपूरा करना चाहता हो। तो इस प्रकार की वकालत में प्रवेश करना जायज़ नहीं है; इसलिएकि वह कभी हक़ का और कभी बातिल का पक्ष धरने वाला होगा और यह हराम (निषिद्ध) है।बल्कि मुसलमान पर अनिवार्य यह है कि जब वह अपने किसी भाई को बातिल में पड़ते हुएदेखे तो उसे नसीहत करे और उसकी ओर से वकालत न करे। क्योंकि पैगंबर सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम का फरमान है : (तुम में से जोव्यक्ति किसी बुराई को देखे तो चहिए कि वह उसे अपने हाथ से बदल (रोक) दे। और अगर(हाथ से रोकने की) ताक़त नहीं रखता तो अपनी ज़बान से रोके। और अगर इसकी भी ताक़त नरखे तो दिल से उसे बुरा जाने, और यह ईमान का सबसे कमज़ोर स्तर है।) समाप्त हुआ।

“फतावा नूरुन अलद्-दर्ब” (11/609-610).

वह मुस्लिम वकील जो अपने पेशे को संपूर्ण ज्ञान और शरीअत के प्रावधानों केअनुसार अंजाम देता है, अपने इरादे को दुरुस्त रखता है, अपने मुवक्किलों को नसीहतकरता है कि वे अल्लाह तआला से डरें और केवल ऐसे हुक़ूक़ की मांग करें जो उनके लिएशरीअत के हिसाब से जायज़ हो, और यह कि वे हक़दारों के हुक़ूक़ को स्वीकार करें, औरयह कि वे अपने बयानात, कथनों और गवाहियों में सच्चाई से काम लें, उन्हें इस बात कीओर मार्गदर्शन करता है कि अल्लाह का डर ही दुनिया और आख़िरत में अच्छा जीवन पानेका पथ है, तथा वह ग़रीब और कमज़ोर हक़दारों के साथ विनम्रता से काम लेता है।

तो जो वकील इन सभी बातों के लिए प्रतिबद्ध है, वह समाज में एक महान सुधारकार्य कर रहा है।

दूसरा :

रही बात आपकी विशेषज्ञता के लिए उपयुक्त शरई अध्ययन की तो यह इस्लामीविश्वविद्यालयों और इस्लामी विशिष्टताओं पर आर्धारित कुछ कॉलेजोंमें उपलब्ध है।

तथा आपके देश में, अल-अज़हर विश्वविद्यालय में शरीअत और कानून का कॉलेज है। यदि आप वहां नहीं पढ़ सकते हैंतो आप उसके पाठ्यक्रम से लाभ उठा सकते हैं, तथा क़ानून के कॉलेजों में इस्लामी शरीयाविभाग और अल-अजहर विश्वविद्यालय में इस्लामिक अर्थशास्त्र केंद्र भी हैं।

सिफारिश कीगई उपयोगी पुस्तकोंमें से : एक पुस्तक अब्दुलक़ादिर औ़दा की पुस्तकः “अत्-तश्रीउल जिनाईअल-इस्लामी, मुक़ारिनन बिल-क़ानूनिल वज़ई” है.

आप मुस्तफा कमाल वस्फी की किताब :“मुसन्नफतुन् नुज़ुमिल इस्लामिया” से भी लाभ उठा सकतेहैं।

बहरहाल, पढ़ाई और अध्ययन करके और अपने देश के विशेषज्ञों से पूछकर, आपको उन पुस्तकों और पाठ्यक्रमों का पता चल जाएगा जो आपके उद्देश्य तक पहुंचनेमें आपकी सहायता करेंगे।

वकालत के इतिहास, उसके कुछ शिष्टाचार तथा उससे संबंधित चीज़ों के बारे मेंजानकारी के लिए, हम आपको शैख़ मश्हूर हसन सलमान की किताब “अल-मुहामात” का अध्ययन करने की सलाह देतेहैं। आप उस किताब को इस लिंक से प्राप्त कर सकते हैं :

और अल्लाहसर्वशक्तिमान ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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